कैसा गुस्सा कैसा ग़ुरूर
आया है जो वो जायेगा
यंहा से क्या वो ले जायेगा
रो रो के वो क्या पायेगा
जब एक दिन यंहा से वो चला जायेगा
कैसा गुस्सा है ये कैसा ग़ुरूर
क्यों है तू इतना खुद से मजबूर
बैठ है तू अपने से ही क्यों दूर
एक दिन सब हो जायेगा भूर
जी ले ये जिंदगी तू यंहा भरपूर
हर वक्त हो जा इस से मशगूल
दुःख भी हो जाये साला कन्फ्यूझ
क्या मैं ? बैठा हूँ इस से बहुत दूर
आँखों को अब हैरानी दे दे
ख़ुशियों को जी भर पानी दे दे
बूढ़ा पे को बहती जवानी दे दे
लड़कपन को वो नादानी दे दे
बह जाये पूरा गुस्सा, ग़ुरूर
फिर कैसा गुस्सा कैसा ग़ुरूर ………………
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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