फकीरा का चोला था बस मैं गा के चला
बात अपनी उसे मै जब अब समझाने चला
दिल मेरा खुद ब खुद अब बैठ जाने लगा
ना मैंने हिन्दू कहा ना उसने मुस्लिम कहा
मेरे प्रेम को उन्होंने दीवारों पर चुनवा दिया
खींची लकीरों में बाँट जाती है जिंदगी कईं
उसने पाकिस्तान कहा मैंने हिन्दुस्तान कहा
माँ की गोदी में खिलते हैं वो फूल होते ही हसीन
माँ की आँखों ने ना कभी तेरा कहा ना मेरा कहा
बदकिस्मत हूँ मै ना किसी को समझा सका
फ़कीरा का चोला था बस मैं गा के चला
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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