बैठे बैठे वो अब सपने सजाने लगे हैं
बैठे बैठे वो अब सपने सजाने लगे हैं
अब यूँ ही मुझे वो अपना बनाने लगे हैं
बांध रहे हैं अपने से वो मुझको को अब ऐसे
चूड़ियों में अपनी मुझे वो अब खनखनाने लगे हैं
आँचल में अपनी मुझे अब यूँ उड़ते चले वो
बिंदी में अपनी मुझे वो अब दमकने लगे हैं
हर अंदाज में मुझे अब कैद करने लगे वो
पलकों को दे सहारे आँखों को सेंकने लगे हैं
बड़ा ही गजब था उसका मुझे अपने पास बुलाना
मै तो भुला सही वो भी भूल गयी अब ये जमाना
बैठे बैठे वो अब सपने सजाने लगे हैं
अब यूँ ही मुझे वो अपना बनाने लगे हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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