बात अपनी जब मै उसे समझाने चला
बात अपनी जब मै उसे समझाने चला
वो रिश्ता मेरा बिखरता क्यों नजर आने लगा
राह में उसे रोकना टोकना क्या अच्छा था मेरा
क्यों कर वो एक मन मुझे रह रहकर अंदर से खाने लगा
कहते हैं आँखों की भाषा होती है बढ़ी ही गजब
क्यों कर आज उस ना समझ को मैं समझाने चला
एक तरफा वो मेरा प्रेम था या वो अहम से भरा हुआ
उस रहा पर में मैं अकेला खड़ा क्यों ऐसे तड़पता रहा
प्रेम अग्न की वो तृष्णा बस ऐसे क्यों भड़कती रही
ना वो बचा सकी मुझे बस मै यूँ ही अब जलता रहा
उसे ऐसे बीच राह में समझाना क्या उचित था मेरा
क्यों कर मुझे अब यूँ वो वाक्य रोज सताने लगा
आँखों से बहते आंसू अब रो रोकर मेरे बहने लगे
वो एक तरफा प्रेम मेर अब खुद ब खुद पछताता रहा
बात अपनी जब मै उसे समझाने चला..................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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