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रात की ये रौशनी


रात की ये रौशनी

रात की ये रौशनी
मध्यम मंजुल है ये रागिनी
बज रही है छम छम
हिर्दय की ये मेरी गामिनी

आँखें बंद कर पकड़ ले
धुँधली सी जो फैली रौशनी
ये कह कर कल हमें छोड़ गयी
आऊँगी फिर आज मोड़ कर

दिख नहीं रहा अगर तुझे
आँखों को आँखों से हम बदल दें
हाँ थोड़े अब साये उभर रहे
रौशनी की धार अपनी तेज़ कर

ये रौशनी हक़ीक़त है
या बस एक सुंदर सा छलावा
कैसे मै इस पे ऐतबार करूँ
कैसे उसे मै अपने पास करूँ

रात की ये रौशनी ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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