सब लूट रहे हैं ....
कहते हैं मिला ये मौका
सब लूट रहे हैं ....
किस पर करें हम भरोसा
सब लूट रहे हैं ....
लगते सब वो एक जैसे
दर्पण के टुकड़े वो हों जैसे
कुछ गम के अल्फाज़ बोल के
कुछ हस्य के संवाद जोड़ के
बस लूट रहे हैं
हम ने दिया ये मौक
सब लूट रहे हैं ....
खाया है ये हमने धोखा
सब लूट रहे हैं ....
सुख दुख कुछ नहीं उनको
बस भूलने की उनको आदत
बड़े वादे हम से करके वो
बस उन्हें वो तोड़ रहे है
हमारा ही कर्म है इसलिए वो
सब लूट रहे हैं ....
संभल लो अब भी गया ना वक्त है
सब लूट रहे हैं ....
नेता तो हमे बनाएंगे
हम क्यों पर बने हुए हैं
उस एक वोट की ताकत से
हम क्यों अब भी बांटे हुए हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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