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आँखें खोजती रही



आँखें खोजती रही

आँखें खोजती रही
वो निगाहें खोजती रही
खोज देखो आज ..... वो
खुद को खोजती रही
आँखें खोजती रही ........

चेहरे खोजते रहे
वो खुद ब खुद बोलते रहे
हाथों की बिछी लकीरों में
वो खुद को टटोलते रहे
आँखें खोजती रही ........

हाथ जोड़े हैं आज
ये आँखें दोनों क्यों बंद है
आज मन के अंदर ही अंदर
ना जाने किस से जंग है
आँखें खोजती रही ........

खोज है वो देखो
कभी वो खत्म होती नहीं
अपूर्ण रहती है वो सदा
पूर्ण वो कभी होती नहीं
आँखें खोजती रही ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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