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सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ



सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ

सोचता हूँ जिंदगी की तुझ से मैं प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ

पीछे पीछे भागता हूँ सदा तो आगे ही रहती जिंदगी
कभी तो मेरे साथ साथ तो चल मेरे साथ मेरी ये जिंदगी
रूठी रूठी रहती है सदा कभी तो बात मान जा ये जिंदगी
इस गम बीच में कभी तो ख़ुशी तरना छेड़ जा ये जिंदगी

सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ

बात मेरी ना मानती आगे आगे मुझ से भागती है जिंदगी
दो पल भी चैन के क्यों ना मुझे गुजरने देती तो जिंदगी
आँखों में मेरे सपने दिन रात क्यों सजाती दिखती है जिंदगी
तोड़कर उसे चूर चूर तो मेरे सामने क्यों बिखरा देती है जिंदगी

सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ
बैठे बैठे तुझ से मैं अपनी आँखें चार करूँ

कठपुतली की तरह अब मुझको नाच नचाती है जिंदगी
आँखों ही आँखों में बीच बजार में मुझे बेच देती है जिंदगी
खरीदार बनकर कभी खुद ही मुझे खरीद लेती है जिंदगी
कभी नकार समझकर मुझे आगे की और बढ़ जाती है जिंदगी

सोचता हूँ जिंदगी की मैं तुझ से प्यार करूँ ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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