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शांत है


शांत है

शांत है
मेरा पहाड़ बिलकुल शांत
अपने में मस्त
दूर दूर तक मेरा पहाड़
शांत है शांत
एक ओर से दूजी ओर
जाती हुई बस हवा का शोर
कल कल करती हुयी
नदी का वो छोर
पेड़ों की पत्तों की वो सर सर
फूलों पर भौंरों की गुंजन
दूर बहते झरनों की झर झर
चिड़ियों की चह चह से भर भर
शांत है
मेरा पहाड़ बिलकुल शांत
अपने में मस्त
दूर दूर तक मेरा पहाड़
शांत है शांत
उल्ट पलट तो सिर्फ दून में है
शोर शराबा बस दून में है
राजनीती और
नीतियों से दूर है मेरा पहाड़
ना सोचना की कमजोर है मेरा पहाड़
कुछ बईमान लोगों
का रचा खेल है ये
अपनों को छोड़ १६ साल
बस गैरों के साथ मेल है ये
इसलिये पहाड़ों में ना पहुंची
अभी तक रेल है ये
फिर भी अपने में चूर मेरा पहाड़
शांत है
मेरा पहाड़ बिलकुल शांत
अपने में मस्त
दूर दूर तक मेरा पहाड़
शांत है शांत

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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