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मिथे ....तैथै


मिथे ....तैथै

हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे ....तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... २
खली जिबान च मेरो
समण चार दिवाल
इन सातो ना मिथे
आस क्षण मां टूट तिल
ब्याकुल सुप्नीयुं का
चखुला हर्ची जाला
जिकोडी को ये इच्छा थे
अपरी बसमा रखु काद्गा ...... अ

हुम् म म अ .........
कद्ग छुईं लगणी छे .....
कद्ग छुईं लगणी छे मिथे .... तैथै
कद्ग छुईं लगणी छे ..... ३

जीकोडी को इच्छा को
इनि सुपनियु का घोल
जीकोडी को सरगा मां
इनि चखलों का गीत
जीकोडी को गौं मां
इनि दोइयों को अपरो सैर
लेंन दया तुम हमार जीकोडी थे स्वास अपरी ...... अ

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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