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लग्यां छन सब अपरा अपरा


लग्यां छन सब अपरा अपरा

लग्यां छन सब अपरा अपरा
अपरी जल्म भूमि थे बचाण बान
भूकी तिसी रैकी पड्यां छन अपरा
अपरी बोई भूमि थे बचाण बान
लग्यां छन सब अपरा अपरा

क्वी क्वी हुँदो इन बिरला रे
जैथे मातृभूमि की पीड़ा दिक जांदी
छटपट वैकु जियु तबै कै जाँदु
अपरू हाक मगणे ऊ भैर आन्दु
लग्यां छन सब अपरा अपरा

सैंण ना वै थे तब हुँदो
जल जंगल जमीन परी अपरी जब घात हुँदो
निकली पड़दा वा यखुला बाटा
हीटेदरी ऐंदा फिर ऐथर पैथर एक तबै व्है जाँदा
लग्यां छन सब अपरा अपरा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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