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सुप्निया मेरा आँखि तू


सुप्निया मेरा आँखि तू

सुप्निया मेरा आँखि तू ,देकि ले देकि ले
ऊँ सुपनियों थे अब तू ,समझी ले आकारी ले
सुप्निया मेरा आँखि तू

ढुंगा ढुंगा तू जोड़दा,कथा वै अपरी तू लिख्दा जा
तेरी कथा मा वा दिक जालो ,तै बिगर यखुली ऊ कण कै राळू
सुप्निया मेरा आँखि तू ,पली ले तू पली ले तू
सुप्निया मेरा आँखि तू .......

बड़ी मयाल्दी है वा ,अपरी जल्म भूमि छे वा ,
पोट्गी भूख सुप्निया बिखरेगे ,यखरा मिथे यखुली तै से कैरिगे
सुप्निया मेरा आँखि तू ,रोई ले तू रोई ले तू
सुप्निया मेरा आँखि तू .......

कोरा बिखरा पड्या छन,म्यार सुप्निया जो अपुरा रंग्या छन
यक्लोप्न मेरो रंगणो छा वैमा ,जीकोडी को खूब खोल मां वो पड्या छन
सुप्निया मेरा आँखि तू ,कोरी ले कोरी ले
सुप्निया मेरा आँखि तू .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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