सब अपने में लगे रहे
सब अपने में लगे रहे
साथ हैं पर सब बंटे रहे
किस को किसी से हैं ना लेना देना
जोड़ घटना के हिसाब लेकिन सब के बराबर बने रहे
सब अपने में लगे रहे .....
भेद है क्या ये कोई जाने ना
ये दिल किसी का क्यों माने ना
क्या कोई ले जायेगा क्या कोई दे जायेगा
अपना अपना खेल सब मगर खेल जायेंगे
सब अपने में लगे रहे .....
सब का यंहा कुछ ना कुछ रह जाता है
इच्छाओं का सफर अब कहाँ पर मरता है
सफर खत्म होता बस जिस्म का
रूह का सफर बस निरंतर चलता रहता है
सब अपने में लगे रहे .....
अंतर क्यों है ये ना क्यों अब मिटता है
पल पल ये तो बस अब बढ़ता जाता है
क्या सुख है क्या दुःख कोई जाने ना
अपने को यंहा पर कोई पहचाने ना
सब अपने में लगे रहे .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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