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मौन


मौन

मौन क्या बोल पड़ा
अपने को टटोल पड़ा
कब तक रहेगा वो शांत खड़ा
कब तक चुप रहेगा वो सदा
अंधकार ले उसे अड़ा
खण्ड से लग के वो खण्डित हो रहा
बहते प्रवाह से बाधित हो रहा
सोच को उस के चोट लगी
बोल दे तो उस से अब तो सखी
ना ना उसे अब खुद जला
जो हर बार हो जला
ना अब उसके करीब जा
जला देगा वो अब ना उसका साथ निभा
राख से उसके क्या मिलेगा
मौन तब क्या बोलेगा
या तब भी मौन ही रहेगा
मौन क्या बोल पड़ा .........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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