अब लगता है .........
अब लगता है
थोड़ा रुक जाऊं थोड़ा ठहर जाऊं
भाग लिया अपने से
बहुत भाग लिया अपने से
अब अपने को कुछ तो वक्त दूँ
अब लगता है
थोड़ा रुक जाऊं थोड़ा ठहर जाऊं
ना मिला आराम अब तक
सुख रहा हरदम यूँ खफा मुझसे
मीलों का सफर कब का यूँ गुजरा मेरा
ना मिला अब तक उस मंजिल का पता
खोया हूँ कब से अपने में
बस रह गया इतना गिला
अब लगता है
थोड़ा रुक जाऊं थोड़ा ठहर जाऊं
मुद्दत के बाद कुछ सोच है
मैंने आज बस अपने लिये
खो गयी थी जो जवानी मेरी
भीड़ की गुमशुदगी की तरह
ना लौट सकता उस में फिर से
बस रह गया दिल में ये मलाल
अब लगता है
थोड़ा रुक जाऊं थोड़ा ठहर जाऊं
थक सा गया हूँ भागते भागते
दो नैनों के सपनों को ले जागते जागते
अब नहीं होता वो इकरार अब खुद से
यूँ फरेब और झूठा का अब व्यापार मुझसे
अब तो संभल ने दो मुझको
अकेला हूँ अकेला अब रहने दो मुझको
अब लगता है
थोड़ा रुक जाऊं थोड़ा ठहर जाऊं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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