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कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...


कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...

कुछ कहानियाँ अधूरी ही
अब अच्छी लगती है हमें
वो किनारे दूर के
अब क्यों इतना भाते हैं हमें
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...

वो दर्द का मेरा अहसास
क्यों सुखद लगता है अब मुझे
आँखों से बहते आँसूं अपने
बहते बहते क्यों चैन दे जाते हैं मुझे
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...

तड़पता हुआ वो मन मेरा
जब दुख झेलता है यूँ ये तन मेरा
क्यों उसे अब अच्छा लगता है
अकेला जब वो यूँ ही उसकी यादों में जब चलता है
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...

बिछड़ता है जब खुद ही वो खुद से
टूटता है जब वो प्यार इस दिल के भीतर से
वो कसक इतनी मदहोश कर जाती है क्यों
पीछे पीछे वो हर बार ऐसे क्यों मेरे अब आती है
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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