ADD

बदलते चित्रों में



बदलते चित्रों में

बदलते चित्रों में
एक चित्र मेरा भी है टंगा हुआ
गया है छोड़ बचपन मुझे
जवानी तेरा भार इतना क्यों बता

फुरसत नहीं है उसको
अब तेरे साथ गुफ्तगू लगाने की
मशगूल हो गया है इतना वो
अब वक्त नहीं है उसे साँस लेने की

बैठ जरा पास मेरे
मुझे तू इतना जा बता
अब मुलकात कैसे कब होगी तुझ से
जो मुझ से तू इतना दूर चला गया

सिमटा हूँ मैं अपने ही रेखाओं में
अटका हूँ मैं सबेर शाम की परछाइयों में
तू मेरी अब और यूँ मुश्किलें ना बड़ा
बना दे कोई नया रास्ता जहां मिल जाये तू खड़ा

बदलते चित्रों में
सदैव रहेगा मेरा ये चित्र यूँ ही अब टंगा
जवानी भी छोड़ गयी है अब मुझे
बूढ़ापे की दो सांसे ही रह गयी है होनी जुदा

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ