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वो अपने पराये


वो अपने पराये

बैठे अकेले हैं आज
वो अपने पराये
सुख के कभी थे
कभी वो दुःख के थे साये
वो अपने पराये .......

काँटों भरी झाडी देख के
फूल वो दूर से मुस्कुराये
हो जाये जो स्पर्श चुभ वो जाये
असहनीय वेदना अकलित उभर आये
वो अपने पराये .......

दो किनारों का वो मिलना था
या जुड़ने के थे वो दो सहारे
एक पुकारे उसे बहुत स्नेह से
दूसरा यूँ ही अकलुष चला जाये
वो अपने पराये .......

भेद पाना बहुत ही मुश्किल है
कौन हैं अपने और कौन हैं पराये
निश्छल कल कल वो बहे
बस समय ही उसमे भेद कर जाये
वो अपने पराये .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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