सोच
बदल गया है तू
अब बदल रहा हूँ मैं
सोच पर तेरी
अब चल रहा हूँ मैं
जो सोच रहा है तू
वो सोच है मेरी
बस फर्क इतना सा
वो कंही और है जोड़ी
जो कच्चे थे अब तक
वो अब पक्के हो गये
सड़कों के वो छोर मेरे
अब कितने सच्चे हो गये
उलटी छतरी आ गयी
चिमनी छोड़ बिजली छा गयी
चूल्हे के लकड़ी छोड़ कर
वो गैस मुझ को भा गयी
भागना नहीं
ना उसे अब मुझे भगाना है
सोच का रिश्ता इन पहाड़ों पर
मरते दम तक साथ निभाना है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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