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जितना भूलना चाह हूँ मैं


जितना भूलना चाह हूँ मैं

जितना भूलना चाह हूँ मैं
वो उतना याद आये
मुझ को अब ना क्यों
ये सब ना अब भाये
जितना भूलना चाह हूँ मैं

हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...

मेरे दिल से पूछो
क्या उस में कमी थी
कमी उस में ना थी
वो कमी मुझ में ही कंही थी
जितना भूलना चाह हूँ

हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...

अब भी है वो मुझ में
छुपा है वो यंही कंही में
अहसास करने की है देर
फिर वो है मेरी सवेर ही सवेर

हो अ...हो अ...हो हो हो अ ...

जितना भूलना चाह हूँ मैं ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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