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वो आवाज बुलाती रही


वो आवाज बुलाती रही

वो आवाज बुलाती रही
मेरे कदम खींचते चले
ना जाने क्या कसीस थी उस में
बस उसकी ओर वो चलते चले

पहाड़ों से वो टकरा रहे
पेड़ पत्तों से वो लिपट रहे
फूलों के संग खिल कर वो
भौरों के जैसे वो गीत गाने लगे

कल कल वो बहने लगी
सब जगह मेरे संग वो रहने लगी
कभी हवा कभी पानी बनकर
निर्मल मेरा मन करने लगी

सोया था अब तक मैं
खोया था अपने में कहीं
आ कर वो मुझे उठाने लगी
बरसों की नींद से मुझे जगाने लगी

वो आवाज बुलाती रही ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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