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ये कैसी नफ़रतें हैं


ये कैसी नफ़रतें हैं

ये कैसी नफ़रतें हैं
ये कितनी नफ़रतें हैं
ये दिल क्यों माने ना
ये दिल क्यों जाने ना
क्या हासिल है
जब खो गया मुस्तकबिल
ये दिल फिर भी हारे ना
ये दिल फिर भी जीते ना
ये कैसी नफ़रतें हैं
ये कितनी नफ़रतें हैं

सात संदूकों में भरी है
दफना कर के भी उभरी है
ये कैसी दीवारें हैं
ये कैसी मुश्किलें हैं
क्यों राहों में पड़ी हैं
लहू के रंगों में
क्यों चारों तरफ बिखरी हैं
ये कैसी नफ़रतें हैं
ये कितनी नफ़रतें हैं

नफ़रतें ही अब
ख़ात्मे का सबब बनेंगी
सत्य पर झूठ डालकर
अब वो कारोबार करेंगी
एक वाद तब तक कायम रहेगा
जब तक एक सच्चा रहेगा
फिर तो बस नफरतों के
बीज ही नफ़रतें पनपेंगी
ये कैसी नफ़रतें हैं
ये कितनी नफ़रतें हैं

जलाकर भी ना बुझेंगी
दफना कर भी वो फिर उठेंगी
कभी वो रस्सी में झूलेंगी
कभी वो चूल्हे में फूकेंगी
गैरों को छोड़ो अपनों को भी भूलेंगी
नफ़रतें इतनी हैं अगर सीने में दबी हो
वो चेहरे पर धड़कन के संग चलेंगी
ये कैसी नफ़रतें हैं
ये कितनी नफ़रतें हैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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