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बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे


बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे

बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे
चुप चुप के मैं वहां पे पीया करूँगा
मांगेगा जब हिसाब मुझसे वो
फिर संग उसके जाम मैं लिया करूँगा
बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे

वो आंखें बड़ी  ही प्यारी थी
जहाँ दिल टूटा मेरा मेरी मोहब्बत हारी थी
वो बातें उसकी बड़ी ही भारी थी
शराब के दौरों में मेरे वो अब भी जारी थी
बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे

मुफ्त में ही अब तो हम मर गये यार
ये दो आंखें उनसे क्यों हो गयी चार
आशिक हो जाते हैं पागल इस प्यार में
बाकी कसूर पूरा कर देती है ये इन्तजार
बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे

मगर वो दिलरुबा क्यो समझती नहीं
बिना मयकदे के अब  शाम गुजरती नहीं
महफ़िल मेरी अब यूँ ही सजती रही
जिंदगी रूठती रही और  मय छलकती रही
बोतल छुपा दो तुम कफ़न में मेरे

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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