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हर रोज


हर रोज

हर रोज  .....हर रोज
खुद को अपडेट  करता  हूँ
ये  दिल अपना ....ये अपना दिल
तेरे लिये..... तेरे लिये
फिर भी जाने  ना क्यूँ
बिना तेरे .....तेरे बिना
वो एरर बता देता  है.
वो क्यों ऐसे दगा देता  है.
हर रोज  .....हर रोज

किसी ने कहा किसी ने कहा
इश्क "गर्म चाय" की प्याली है ...प्याली है
और ये दिल और ये दिल
पारलेजी का बिस्किट है ....बिस्किट है
हद से .. ज्यादा डूबेगा तो वो डूब जायेगा
वो अपने से ही तब टूट जायेगा छूट जायेगा
हर रोज  .....हर रोज

उम्र की ये राह है उम्र की इस राह में
जज्बात बदल जाते हैं औकात बदल जाते हैं
वक़्त तो एक आंधी  ये कैसी आंधी है
जिस से हालात बदल जाते है ....बदल जाते है
सोचता हूं....सोचता हूं कुछ करूँ कुछ करूँ
इस करने में उनके अंदाज बदल जाते हैं
कमबख्त मेरी सैलरी आखिर में आते  आते ही
तो उनके सारे  ख्याल बदल जाते हैं
हर रोज  .....हर रोज

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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