कुछ चीज छुपा रखी है मेरी
कुछ तो मेरा था तेरे पास उसे ढूंढ ना पाया मैं
अपने बनाये घेरे से क्यों ना निकल पाया मैं
कहती थी तू जिंदगी पल पल मौजों की रवानी
हर एक लहर थपेडा उस में एक नई कहानी है
रूबरू होते थे जँह हर दिल के किस्से -हिस्से
समन्दर है वंहा अश्कों का ठहरा खारा पानी है
दर्द सहकर भी उस चीज को ख़ोज ना पाया मैं
बता वो चीज तुमने मुझ से कहां छुपा रखी है
निगाहों में अश्कों में या आँखों की दीवार में
दिल के सागर से छलकते उस निश्छल प्यार में
अकेला मेरे हम सफर ये सफर अब कटता नहीं
कभी करती तू इन्तजार मेरा आज मैं तेरे इन्तजार में
समझ बैठा अब सब तेरे किस्से और वो तेरे हिस्से
जो गुजार दिये थे तूने सब निस्वार्थ ही मेरे प्यार में
कुछ चीज छुपा रखी है मेरी .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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