हे तमस हरा
अज्ञानता अब तुझ से
लड़ने का मन करता है
फैले तमस में उजियारा
तुझे ढूंढने का मन करता है
वो अँधेरा छा रहा है खूब
मन ये रजस् सा ललचा रहा है खूब
आंच उसकी जला रही है खूब
मुझको अब वो लुभा रही है खूब
असर रजस् का हो रहा है भरपूर
कोई अपना मुझ से हो रहा है दूर
वो तृष्णा और लालसा मेरी बढ़ा रही
मोह की और वो मुझको बढ़ रही है
अब ये नश्वर शरीर खुद से ही
सब भूल जाना चाहत है
बोध आत्म को जब भी
अंतर्मन सत्व का होता है
एकाकार से जब तमस मिटता है
पूरी तरह अपने से वो छट जाता है
अंधकार से प्रकाश पल्वित होता है
तब ही मोक्ष मार्ग खुलता है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी


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