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निश्चित ही


निश्चित ही

कुछ कंही कोई थोड़ा सा रह ही जाता
मिलता बहुत पर  कुछ हात नहीं आता

इने-गिने  में मैं रोज उनको ही हूँ  चुनता
ऐसे नहीं लंबा सफर उन बिन है गुजरा

बहुत नहीं पर थोड़ा  ही साथ काफी है
साथ चले नहीं पर वो ही मेरा साथी है

कोई चीज़  ना ही ना ही कोई वस्तु उनकी
छोटी हो उनसे चुपके से मैंने ना लपकी

किंचित ही था जो वो संकोच था मेरा
कह नहीं सका उनसे उस ने डाल रखा था पहरा

कुछ थोडे चन्द शब्द जो उभरे पटल मेरे
इसी तरह ह्रदय संग उन्होंने रोज लिए फेरे

निश्चित ही कुछ कंही कोई थोड़ा सा रह ही जाता
मिलता बहुत पर  कुछ हात नहीं आता

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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