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कुछ नी कनू


कुछ नी कनू

कुछ नी कनू
म्यारू ज्यू  आजकल
बैठ्युं छौं मि ड्यारा मां
निरबगि बणिक आजकल
कुछ नी कनू

सच माणा त
पैली मि यन नि निछ्याई
गौं  चारी तरफै घूमे घूमे
मिन बालपन बिताई
कुछ नी कनू

अब लोग बैठ्यांछन
मि बी बैठ्युं छौं
खुट्यों ते अपड़ा पसरेकी
औरृ खूब से से  कि
कुछ नी कनू

पैली मजबूरी छे
अब बड़ो व्हैग्युं मि
तब बोई पिछने पिछने
सुबेर भटिक  लगि जांदी छे
कुछ नी कनू

इन निकमो मि ह्वेग्युं जी
लज्जा सरम बेचीं कि खेग्युं
तास दारू बीड़ी  फुके कि
जीबन थे मिल फुके दे
कुछ नी कनू

लोगू  अब याद दिलांद
बालपन थे मिथे फिर मिलांदा
निछ्याई यनि वब
क्या व्हैग्या होलो मिथे अब
कुछ नी कनू

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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