गढ़वाल का कुछ शब्दों में वर्णन करना कठिन है | यह क्षेत्र विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है | देवभूमि नाम के अनुरूप यहाँ बड़ी संख्या में मंदिर एवं धार्मिक पर्यटन को देखा जा सकता है | गढ़वाल क्षेत्र अपने मुख्य आकर्षणों जैसे हिमालय, नदी- झरनों एवं घाटियों की सुन्दरता से परिपूर्ण है | उत्तराखंड राज्य की अमूल्य संस्कृति राज्य को वरदान स्वरुप प्राप्त है | महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा घाघरा हो या यहाँ का स्वादिष्ट व्यंजन “फाणा” हो, लोकनृत्य “लंगवीर” हो या लोकगीत “जोड्स”, यहाँ की हर चीज लोगों को आपस में एक अटूट बंधन में जोडती है|
उत्तराखण्ड, एक ऐसा भूखंड है जो प्राकृतिक स्रोतों से बहता पानी .सीढीनुमा खेत और दूर तक जाती हुई पतली पगडंडियां, प्राकृतिक सौन्दर्य तथा अपने रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है। यहाँ की संस्कृति, गीतसंगीत और त्योहार दूर बसे लोगों को आज भी अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इनमें से उत्तरांचल की मकरसंक्रांति, होली, रामलीला, ऐपण, रंगयाली पिछोड़ा, नथ, घुघूती आदि त्यौहार विशेष प्रसिद्ध हैं। यदि खान-पान की बात की जाए तो यहाँ के विशेष फल -काफल, हिशालू , किल्मौडा, पूलम हैं तथा पहाड़ी खीरा, माल्टा और नीबू का भी खासा नाम है। ऐपण, उत्तरांचल में शुभावसरों पर बनायीं जाने वाली रंगोली को ऐपण कहते हैं। ऐपण कई तरह के डिजायनों से पूर्ण होता है। ऐपण के मुख्य डिजायन-चौखाने , चौपड़ , चाँद, सूरज , स्वास्तिक, गणेश, फूल-पत्ती, बसंत्धारे तथा पो आदि हैं। ऐपण के कुछ डिजायन अवसरों के अनुसार भी होते हैं। ऐपण बनाने के लिए गेरू तथा चावल के विस्वार का प्रयोग किया जाता है। आजकल ऐपण के रेडीमेड स्टीकर भी प्रचलन में हैं। घुघूती उत्तरांचल का प्रसिद्द त्यौहार है। यह हर वर्ष 14-15 जनवरी को मकरसंक्रांति के दिन मनाया जाता है । यह त्यौहार बहुत ही शुभ माना जाता है, साथ ही अन्य त्योहारों की तरह धूम धाम से मनाया जाता है। इसे घुघुते का त्यौहार भी कहते है। मकरसंक्रांति के दिन शाम को घुघुते बनाये जाते है और उन्हें माला में पिरोकर बच्चों को पहनाया जाता है । अगले दिन सुबह को ये घुघुते कौऔं को खिलाये जाते है। कौऔं को बुलाने के लिए विशेष शब्दों का प्रयोग करते है।खाले खाले कौए खाले" , पूस में माघ का खाले | ये त्यौहार सभी के लिए बहुत शुभ है क्योंकि इसी समय सूर्य दक्षिण से उत्तर में प्रवेश करते हैं। रंगयाली पिछोड़ा उत्तरांचल में विवाह के आलावा अन्य अवसरों पर पहने जाने वाली चुनरी को रंगयाली पिछोड़ा कहते है। यह संयुक्त रूप से लाल तथा पीले रंग का होता है। ऐपण की तरह इसमें भी शंख, चक्र, स्वास्तिक, घंटा, बेल-पत्ती, फूल, आदि शुभ चिन्हों का प्रयोग होता है। पहले लोग घर पर ही कपड़ा रंग कर पिछोड़ा तैयार करते थे । प्रचलित होने के कारण अब रंगयाली पिछोड़ा रेडीमेड भी आने लगे हैं। इन्हे और सुंदर बनाने के लिए इन पर लेस, गोटा, सितारे आदि लगाए जाते हैं। नथ उत्तरांचल के आभूषण भी अपनी पहचान बनाने में कम नही हैं। उत्तरांचल की नथ (नाक में पहने जाने वाला गहना) अपने बड़े आकार के कारण प्रसिद्द है। यह आकार में बड़े गोलाकार की होती है और इसके ऊपर मोर आकृति आदि डिजायन बनाए जाते हैं। इन डिजायनों को बनाने के लिए नगों तथा मीनाकारी का प्रयोग किया जाता है। यूँ तो उत्तरांचल की संस्कृति को चंद लाइनों में नही समेटा जा सकता । फिर भी इन मुख्य परम्पराओं से हमें उत्तरांचल के सांस्कृतिक पहलुओं की एक झलक देखने को मिलती है। इस खूबसूरत राज्य के उत्तर में जहाँ तिब्बत है वहीँ इसके पूरब में नेपाल देश है। जबकि इसके दक्षिण में उत्तर प्रदेश और उत्तर पश्चिम में हिमाचल प्रदेश है। इस राज्य का मूल नाम उत्तरांचल था जिसे बदलकर जनवरी 2007 में उत्तराखंड कर दिया गया था। राज्य में कुल 13 जिलें हैं जिन्हें प्रमुख डिवीजनों, कुमाऊं और गढ़वाल के आधार पर बांटा गया है।
कुमांउनी और गढ़वाली लोगों की जीवनशैली और रहनसहन में उनकी संस्कृति प्रदर्शित होती है | यहाँ पर इन दो प्रमुख समूह के अलावा जौनसारी, बोक्सा, थारू, भोटिया और राजी भी प्रमुख जातीय समूह है | उत्तराखंड में ज्यादातर लोग सीढ़ीनुमा खेत एवं स्लेट छत वाले घरों में रहते हैं |गढ़वाली संस्कृति का मुख्य आकर्षण इतिहास, यहाँ के लोग, धर्म एवं नृत्य है जो की यहाँ पर राज्य करने वाले राजवंशो एवं जातियों के प्रभावों का एक सुन्दर समायोजन है | यहाँ के इतिहास में यद्यपि कलात्मक एवं सांस्कृतिक रूप से बहुत विविधता है किन्तु किसी व्यक्ति के ध्यानाकर्षण हेतु यह पर्याप्त है |
यहाँ के लोकनृत्य यहाँ के जीवन, मानव अस्तित्व एवं असंख्य मानव भावनाओं से युक्त हैं | इस शांत और सुरम्य राज्य की यात्रा तब तक अधूरी ही रहेगी जब तक यहाँ के स्थानीय जनों की संस्कृति एवं जीवनशैली के बारे में जानकारी प्राप्त नहीं की जाती |
गढ़वाल क्षेत्र की लोकप्रियता पवित्र हिन्दू धर्म के धार्मिक स्थलों चार धाम के कारण है और इसी कारण इसे देवभूमि नाम से भी जाना जाता है |इस क्षेत्र का भोजन दिखने में सीधा सरल, किन्तु नैसर्गिक स्वाद से युक्त होता है | गढ़वाल की विषम एवं पहाड़ी परिस्थितियों के कारण गढ़वाली मांस खाना पसंद करते हैं एवं इसे अपने भोजन में विशेष स्थान भी देते हैं | किसी गाँव में किसी मंदिर अथवा किसी धार्मिक आयोजनों पर गाँव में रहने वाले एवं देश विदेश में रहने वाले सभी गाँव के लोगों को बुलाया जाता है जिसमे सभी लोग शामिल होते हैं |
गढ़वाली भोजन
स्थानीय लोग खानपान में पतले भूरे रंग की मंडवे की रोटी को भी पसंद करते हैं जो की मंडवे (बाजरा) के आटे से बनायीं जाती है एवं इसे लोग घर में बने घी के साथ खाते हैं | इसके अलावा गढ़वाल कुमाऊ की पहाड़ियों में गहथ के परांठे भी पसंद किये जाते हैं जिन्हें बनाने के लिए दाल को रात भर भिगाया जाता है बहुत सी लहसन,अदरक, हरी मिर्च और कुक्कुट के आटे के साथ मिला कर प्रेशर कुकर में पका कर इसे गेंहू के आटे के साथ बनाया जाता है |इसके अलावा यहाँ रोट, रस, काफ्ली, छनछयोड, भांग की चटनी आदि प्रसिद्ध है | आप जब भी गढ़वाल की यात्रा पर आयें तो स्थानीय रेस्तरां की सूची बना के रखे जहाँ आप स्थानीय व्यंजनों का लुत्फ़ ले सके ताकि आपकी यात्रा अप्रत्याशित आनंद से भर सके |
जलवायु
उत्तराखंड राज्य तीन प्रमुख मौसमों का अनुभव करता है जिनमें गर्मी, मॉनसून और सर्दी शामिल हैं। यहाँ की जलवायु बहुत हद तक यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है। यहाँ जहाँ एक तरफ विशाल पहाड़ियां हैं वहीँ दूसरी तरफ छोटे प्लेन भी है । उत्तराखंड की यात्रा का सबसे अच्छा समय गर्मियों का मौसम है इस समय यहाँ का मौसम बहुत ही अच्छा रहता है। उत्तराखंड आने वाले पर्यटक अपनी यात्रा को सर्दियों में भी प्लान कर सकते हैं। हालांकि भीषण बर्फ़बारी के चलते कुछ स्थानों पर आने वाले पर्यटक नहीं जा सकते हैं फिर भी अगर आप चाहें तो इस मौसम में भी उत्तराखंड की यात्रा की जा सकती है।
भाषाएँ
उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा हिन्दी है, लेकिन यह विभिन्न बोलियों में विविध क्षेत्रों में बोली जाती हैं। कुमाऊंनी और गढ़वाली यहाँ ज़्यादातर बोली जाती है। इसके अलावा, पहाड़ी बोली भी कुछ क्षेत्रों में लोकप्रिय है। 'कुमाऊं' व्यापक श्रेणी के तहत, लोकप्रिय उप बोलियाँ हैं - जोहरी, दानपुरिया, अस्कोटी, सिराली, गंगोला, खास्पर्जिया, फल्दाकोती, पच्चायी, रौचौभैसी, माझ कुमैया, सोरयाली, चौघरख्याली और कुमैया। गढ़वाली बोली की उप श्रेणियों में जौनसारी, सैलानी और मर्ची शामिल हैं। यहाँ की प्रमुख बोलियां संस्कृत, केंद्रीय पहाड़ी, और सौरसेनी प्राकृत से प्रभावित हैं और ये भाषाएँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।
उत्तराखंड में पर्यटन
उत्तराखंड के 13 खूबसूरत जिलों में अनेक पर्यटक स्थल हैं नए स्थलों की खोज के साथ यहाँ की सूची बढती ही जा रही है। पूजा से ट्रैकिंग तक, हर स्थल अपने में अलग अहमियत रखता है । यहाँ अनेक तीर्थस्थल मौजूद हैं और यहाँ की खूबसूरत वादियाँ यात्रियों के लिए रोमांचक गतिविधियों की एक विशाल रेंज प्रदान करती है।
उत्तराखंड के झीलों के जिले के रूप में जाना जानेवाला, नैनीताल एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो की समुद्र तल से 1938 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। स्वर्ग का यह टुकड़ा अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1841 में खोजा गया था और एक हॉलिडे रिसोर्ट में बदल दिया गया। शब्द 'नैनी' हिंदू देवी नैनी के नाम से पड़ा,जिनका मंदिर झील के किनारे स्थित है।
नैनीताल आगंतुकों को नौका विहार, नौकायन और मछली पकड़ने के अवसर प्रदान करता है। नैनीताल के विभिन्न खूबसूरत पर्यटक स्थल दुनिया भर से पर्यटकों की एक बड़ी संख्या कोअपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन स्थानों में हनुमानगढ़ी, खुरपाताल, किलबरी,लारिअकंता, और लैंसडाउन शामिल हैं।
इसके अलावा इन स्थानों से नैनी पीक, स्नो व्यू , नैनीताल रोपवे, भीमताल, नौकुचियाताल, और सात ताल नैनीताल के पास के स्थल हैं जो अपनी सुंदरता के लिए जाने जाते है। 'पहाड़ियों की रानी' मसूरी देखने लायक जगह है। इसकी खूबसूरत हरी भरी पहाड़ियां और शक्तिशाली हिमालय की बर्फ से ढकी पर्वतमाला दून घाटी जो की दक्षिणी दिशा में स्थित है, का एक मनोरम दृश्य प्रदान करते हैं।
यमुना ब्रिज, नाग टिब्बा, धनौल्टी, और सुरखंडा देवी मसूरी के आस पास के पर्यटक स्थल हैं। कौसानी कत्युरी घाटी , गोमती नदी और पंचचुली की बर्फीली चोटियों, नंदा कोट, नंदा देवी, त्रिशूल, नंदा घुंटी, चौखम्बा और केदारनाथ के लुभावने दृश्य प्रदान करता है। अनासक्ति आश्रम, पंत संग्रहालय, और लक्ष्मी आश्रम भी पर्यटकों में लोकप्रिय हैं।
कौसानी कत्युरी घाटी , गोमती नदी और पंचचुली की बर्फीली चोटियों, नंदा कोट, नंदा देवी, त्रिशूल, नंदा घुंटी, चौखम्बा और केदारनाथ के लुभावने दृश्य प्रदान करता है। अनासक्ति आश्रम, पंत संग्रहालय, और लक्ष्मी आश्रम भी पर्यटकों में लोकप्रिय हैं।
अपने प्राकृतिक सौंदर्य और एक विविध वन्य जीवन के लिए जाने जानेवाले जगहों में, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क, केदारनाथ अभयारण्य, गोविंद वन्यजीव अभयारण्य, बिनसर वन्य जीव अभयारण्य, आस्सन बैराज पक्षी अभयारण्य, नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क, और अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य जैसी जगहें शामिल है
कई तीर्थयात्री आदि कैलाश, अल्मोड़ा, अगस्त्य मुनि, बद्रीनाथ, देवप्रयाग, द्वारहाट, गंगनानी,गंगोलीहाट, गंगोत्री और गौरीकुंड जैसे स्थानों पर देवताओं के दर्शन हेतु उत्तराखंड आते हैं। अन्य प्रसिद्ध स्थलों हरिद्वार, केदारनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, और जागेश्वर शामिल हैं।
हिमालय और काराकोरम पर्वतमाला ट्रेकिंग, पर्वतारोहण, स्कीइंग, और रिवर राफ्टिंग के लिए आदर्श स्थल हैं।यहाँ बाइकिंग, पैराग्लाइडिंग और कैम्पिंग का भी आनंद लिया जा सकता है।


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