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भाग ५ घपरोल

 भाग ५   

सुबेर-सुबेर घपरोल

" " द ब्वाला तब- घपरौल" "

कजै(गाना गाणू छाइ)," राति सुपन्यों मा आंदि तू,
निंद मेरि भगांदि तू "।
जनानि," क्वा पातर च वा? जू राति त्यार सुपन्यों मां आई। अर सुबेर -सुबेर उठिक ही वींक नौं पर ऐडाणू छै।"
कजै," अरे, तू ही त छै।"
जनानि," फिर झूठ! मि त ब्यालि राति सुपुन्यूं मा लैंसडाउन टिपन टाप घूमणू छाई। त मि कनकै आई सकदू । एक आदिम द्वी जगा एक ही रात नि घुमि सकदू। जल्दी बतावा । निथर मि मैत जाणू छौं अब्बि "।
कजै," अब मि क्या पता! घूमणि त तू ही छै ना द्वी जगा। पर तू इन बता कि तू कैकि दगड़ छाइ घूमणी लैंसडाउन? "
जनानि," छ्वाड़ा जी।सुपन्या भी कबि सच हुंदान। तब । हैं जी! फण्ड फूको। मि त यू नौनियालों खातिर रुकि ग्यों। निथर मिन कैदिन चलि जाण छाइ मैत।
कजै," हां जी। आजक बाद मि सुपन्या नि दिखलू। बस खुश।"

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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