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घपरोल भाग ४

 भाग  ४  

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

जनानि," तुमारी अकल घास चरण जाईं कि अक्ल मा पत्थर पुड्यां जू हमेशा आपरि पुष्पा बौ ऐथर पेथर चकराण्या रौंदा" ।
कजै," अरे! अक्ल भी वखि जालि चरणु खुणि जख हैरि भैरि घास व्हाव।सुख्यूं डाऽल पर क्या खाणु अक्लान भी। जन तू छै।'
जनानि," हैं "

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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