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भाग ६८घपरोल

भाग ६८

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमान जी,"एक घण्टा ह्वै ग्याइ अर आज चा नि बणि। क्या अशोक होटल बिटी आणि।"
श्रीमती जी,"बणगै ,बणगै।आज गुलगुला भि बणैयां छन म्यार। ल्याव।"
श्रीमान जी,"आज त गौड़ी भौत दुधाऽल बणि। क्य बात भै।"
श्रीमती जी,"वू मिन स्वाच ,गुलगुलों खांद-खांद छ्वीं बत लगौला कि तुमते ब्यालि पुष्पा दीदी कोर्ट किलै लिगी।"
श्रीमान जी,"आज जुबां गुलगुलौं सि मिठी किलै हुईं। अब समझू मि। "
श्रीमती जी,"जन भि समझा। एक त यूंक सेवा भि कारा अर सुणौ भि। खैर कू छ्याइ तुमार दगड़ द्वी हौर पिक्चर हौल मा।"
श्रीमान जी,"त सुण। तब हि प्वाड़लि तेरी जिकुड़ी मा आग। एक त स्यालू सुंदरु अर. .
श्रीमती जी," कू सुंदरु। मेरी मौसीं क छुट्टू "भुला सुंदर "।
श्रीमान जी,"हाँ व्ही ही बांदरु ।पैंतिस छत्तीस सालोक च कुछ दादा टाइप।"
श्रीमती जी ,"पर वैक त मौंसा जीक घर निक्वाल कर्यूं च। मिन सुणि वू बिगड़ी गै छ्याइ त मौसा जीन अखबार मा छपै चाहे कि क्वी संबध नि। अर दुसरु कू"।
श्रीमान जी,"दूसरु पुष्पा बौक सबसे छुट्टी भुल्लि "जगदा" जो पुष्पा बौ से भि जादा सुंदर च पर वींक ब्यौ नि हुणू छ्याइ सतमंगल्या च. पैंतीस सालो व्हैलि।जगदम्बा देवी।"
श्रीमती जी," पर जगता त आपर दीदी क घार आईं रै व्हैलि . पर सुंदरु कख टकरै तुमते."
श्रीमान जी,"अरे वू पुष्पा बौ क भुल्लि तै भगै क ल्याइ । अर दिल्ली कखि लुक्यां छ्याइ। त कोर्ट मैरिज करणौ आयां छन वख".
श्रीमती जी," कन बिजोग प्वाड़ वै सुंदरु खूणि जू वीं पातर क बैणि ही रै वेखुणी भगौण वास्त।"
पर तुमारो निरपट किलै व्हाई वख।"
श्रीमान जी,"अरे निरपट त अब ह्वाल. जब पुष्पा बौ क भैजी बालम हमतैं राइफल न उड़ाल। वैकू केस कर्यूं लड़की भगाणौ त्यार मौंसा परिवार अर मिफर भि। बुलणू छ्याइ बल मिन गोली न खतम करणा न सब।"
श्रीमती जी," पर तुमन क्य कार".
श्रीमान जी," गवाह दस्तखत त मिन अर पुष्पा बौ नि करिन वूंक कोर्ट मैरिज मा। वींक दीदी अर जीजा बणिक। तबि त कोर्ट मैरिज ह्वाई।"
श्रीमती जी,"अब कख जौं मि। ये आदिमो आलि जालि काम से ऐन कैदिन हमतैं भि मरवाण। अब सर्रा रिश्तेदारों मा नाक कटै ग्याइ।
श्रीमान जी," आज त पुष्पा बौ इना हि औणि. . .
श्रीमती जी," क्य व्हाइ त. माफी मांगलू मि दीदी मान।वीं दीदी क क्य कसूर।"
श्रीमान जी," अरे पुष्पा बौ औणि च पर गालि दिंद दिंद . जादा चिल्लाणी रैंद धरमूक ब्वै पातर ,पातर. अब भुगत।"
श्रीमती जी," काम क्या वीं पातर क. मि त बाथरुम मा जाणू। बोलि देन नहेणि च. "
श्रीमान जी," बाथरुम किलै. अब मैत नि जाणि तू। पर मिन त कुछ नि ब्वाल."

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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