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भाग ६७ घपरोल

भाग ६७ 

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमान जी,"बौ सिमानि।नमस्कार।"
पुष्पा बौ,"तैं आपरि सिमानि आपर मधुबाला खुणि धै. कख तेरी वा हिरोइन. जू मैं खुणि पातर ,हेमामालिनी चिल्लाणि रैंद.हमन तुमारो एक लड्डू दाणि त जाणि नि ब्यौक।अर बकबास भि हमखुणि।"
श्रीमान जी,"बौ नहेणा जाईं. नराज नि हू. सब आपक कृपा से ठिक ह्वै ग्याइ। भैजि नि आई।"
पुष्पा बौ," झूठ नि बोल तू।गेट पर बाथरुम त खुलि च. जरुर छत मा ह्वैलि।
श्रीमान जी,"बौ तू आराम से ये मौड़ा मा बैठ। मि बुलांद. " हे धरमू क ब्वै। बौ आईं.चा बणै जरा।"
पुष्पा बौ," तुमार चा कू भूख नि छौं मि. वू त धरमूक ब्वारी आच्छि च । त मिन तुमार घारम कदम धरिन. निथर दिखेण्या बि नि छौं मि इन्न।"
श्रीमान जी," ठिक कार बौ। धरमूक ब्वै सुभाव हि इन्नि च तब। पर इन बतौ भैजि नि ऐ।"
पुष्पा बौ," अरे, त्यार भैजि त वापस लद्दाख चीन बोर्डर छुट्टी कैंसिल कैरिक चलि गैन. लार आयूं छ्याई । कुछ लट्ठों लड़ै हुणि बल चीन दगड़.त वूंक पल्टन वख भैजि । त्यार भैजिक त इन्नि नौकरी।"
श्रीमान जी," भौत बढिया।मि छौं न । आपक सेवा मा।"
पुष्पा बौ," कन भौत बढिया।त्यार भैजी लड़ै मा पोस्टिंग अर तू खुस। वीं मधुबाला न त्यार दिमाग बि खराब कैरि याल।"
.
श्रीमान जी," न बौ । सिन बात नि. मतबल क्वी बि भैर क काम ह्वा त मि कैरि द्वीलू।"
पुष्पा बौ," क्वी जरुरत नि अब तेरि असान ।धरमू ब्वारि सब घार मा मगैं दिन आन लाइन। पर आज तेरि घरवालि क हिसाब कैरिक जाण मिन। बुलौ व्हीं तैं अबि मेरि सामणी।"
श्रीमान जी," हे धरमू ब्वै। भैर ऐजा। बौ बुलाणि।
श्रीमती जी ," ऐ ग्यों।दी परणाम ।"
पुष्पा बौ," मिते नि चयेंदु। त्यार नाम ,परनाम । तू क्या पातर सातर चिल्लाणि रैंद। पातर ह्वाल वू त्यार सुंदरु क ब्वै। अर वू त्यार भुला सुंदरु । जू मेरि भुलि ते भकलेकि भगै ल्याई।"
श्रीमती जी," द्याखा दी। म्यार मैति तैं गालि नि दी।"
पुष्पा बौ," किले नि द्य्यूं। त त्यार ये हैण्बैग तै द्यूयूं. जू खुद कोरट ब्यौ मा जीजा बणि गवाह बणि। हमन समाजो डैर समझौता कार कि चलो बच्चों न गल्ती कार कि सुधरि जालि।
श्रीमती जी ," मि क्या जाणू। तुम जाणि अर तुमार स्यु गवाह।"
पुष्पा बौ," अच्छा । वा तेरि खबरि त पल पल कि लाइव ब्राडकास्ट करणि छै. कि हमने पिक्चर देखि।हमने मूला की भुज्जि खाई कोरट में।अब क्य भलि अदमण बणै।अब मि आपर भुलि तैं यखि लाणू छौ। पर सब्यूं तैं जेल क हवा नि खलै त म्यार नाम बि पुष्पा नि।"
श्रीमान जी,"यू भौत बढिया। स्यालि बि यखि आणि च। भौत सुंदर ।"
श्रीमती जी," हाँ अब। द्वी गिलास चा मिलालि।
दीदी जेल करैल त ये धरमूक बाबा तैं करैन. जू झूठ जीजा बणिक गवै दिणा ज्यायूं छ्याइ.
मिन त मैत चलि जाण ।"
श्रीमान जी।," अबि जा। पर मिन त कुछ नि ब्वाल। हल्ला नि कैर. ब्वारि बुलौ . आज ब्वारिक हथ क चा पैलि बौ. . . .
"हे धरमू . हे धरमू. . .

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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