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भाग १० घपरोल

भाग  १०  

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

जनानि," तुम बुलणा छाई तीन दिन बिटी कि तुमार नज़र क चश्मा टूटि ग्याइ। बणाना किले नि छाव?"
कजै," ना भै ना। मि काणू ही ठीक छौं। जैदिन बिटि चश्मा टूटी , म्यार जश्कैण बंद ह्वै ग्याइ। निथर रोज बगैर मैक अप तेरि शकल देखिक सुबेर सुबेर मि जश्कै जांदू छाइ।

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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