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भाग११घपरोल

भाग११ 

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

" द ब्वालो ता "
जनानि," छी भै। ये कोरोना काल मा छह मैना बिटिक लटल नि कटाण से लम्बी धमेलि हुंई तुमारि। हम द्वी इकसानि लगणा छवां क्वी पैथर बिटी द्याख्यल त।
कजै," अरे मेरि त छोड़। ब्यूटी पार्लर नि जाण से त्यार भी दाड़ी- मूंछ आइ गैन। पैथर क्या तू त ऐथर बिटी भी मि जणी लगणी छे। उन्नि तू अजक्याल म्यार तरां जीन- टी सर्ट चमकैक घुमणी रैंद।
जनानि," पता नि। मिन त छह मैना से शीशा मा मुखड़ी भी नि द्याख जब मैक अप नि करण त। पर तुमतें कनके लगणू ? "
कजै," अरे , ब्यालि बरामदा मा जब तू खड़ि छै न । तो पडोसी छ्वारा धै लगाणू छ्याइ " अंकल जी , अंकल जी आपक घार पाणी आणू च ।" मिन ब्वाल मि त भीतर छौं त यू अंकल केखुणि भुनु। अरे द्याख्य त तू खड़ि छ्याई।"
जनानि," हैं। ज्या ह्वाल अब।"
कजै," हूण क्या च। कुछ दिनों मा तू पूरु रिख बणि जेलि।"

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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