भाग ७२
सुबेर-सुबेर घपरोल
" आजो गढवालि चुटकला" " "
श्रीमतीजी(बड़बड़ायीं)," कतगा चलाक च यू आदिम । आपर झाड़ू पौंछा क काम त पैसों मा कराणू नौकरानी मा । हैँ ! अर् मि यूंक लदोड़ी फुकणो हमेशा चुल्लू पर हि मिस्सू रौल। इन नि सूचणू कि ब्वारी तैं समझों कि बेटा " स्यूं गाल़ि नि सीख अर खाणो बणौन सीख अपरी सासू क बात मान।" गढवालि त दगड़ रैकि सीख हि जाऽलि।श्रीमान जी," क्य छै तू मंतर सि बड़बड़ांद जाणि किचन मा ।आज त चुप रै। ब्याखुनि दफै नै साल कू पार्टी च बल। धरमू बताणो छै।"श्रीमती जी," क्य ज्वान बण्यूं च। "बूढड़ि घोड़ी अर लाल लगाऽम!। घुटकि लगाणो चक्कर मा खुश ह्वाल हुयूं। फिर सर्रा रात इक्कू गाणा ," सतपुलिक सैणा मेरी बौ हे पुष्पा हो . . . ।श्रीमान जी," बच्चोंक खुशि मा हि हमार खुशी च। जादा कड़कड़ाट नि कैर। नै साल कु स्वागत खुश ह्वैक करलाऽ।"श्रीमती जी," हमारु नै साल त चैत बिटीक शुरु हुंद।मिन त आज तक नि मनै। हाँ तुम आदिमूक घुटकि लगाणो चक्कर मा नै साल च। "मुंह मा न बल दांत अर् पेट मा न आंत" तब रैलु वे पीजा,बर्गर,हाऽट डॅाग दस घण्टा तक चप-आ-चप लग्यूं। नरभै पार्टी।"श्रीमान जी," अच्छा, चलो मि बच्चों खुणि बुल्दू कि "होटल से कुछ नहीं आयेगा। आज सारी गढवाली डिश बनेंगी नये साल में " तैयार छे.श्रीमती जी," बस बढि ग्या न ब्लड प्रेसर। ह्वै ग्या हिंदी शुरु। शाम खुणि त एक घूंटो बाद अमेरिक हिंगलिश शुरु। मिन त कुछ नि बणान.अर ना म्यार घारम हल्ला मचाणो जरुरत।वक्खि चलि जाव वीं पातर आपरि पुष्पा बौक घार।"श्रीमान जी," इन बुल्दि कि आंदु हि नी गढवालि डिस। अहा,भर्यां स्वाल,बाड़ी,फाणु,गुलगुला,मर्सा कू हलवा, गैथु पत्वड़ा, प्लेऊ,चुनू भरिं र्वटि। कुछ नि आंदू त्वे तैं।बथ करणि च वखम।पुष्पा बौ ते सबकुछ आंदु।चा ला एक कप। त्यार त सुबेर-सुबेर यी ही काम च। चर चर ,बड़ बड़ बकबास शुरु करण."श्रीमती जी,"न इन बतौ! तुम ते आज तक कू खलाणू रै। मि कि वा पातर पुष्पा बौ।ठिक त ब्वाल मिन कि हमार नै साल "चैत"कु मैना आंदु।"श्रीमान जी," न बासा घुघती चैता की,खुद ह लगिं मि मैता की।" यू गाणा भि त । "कब आलू मैना चैत कू, जब तू जैला मैत कू।" हा हा क्य बढिया गीत बणि ग्या। ऐसे हि थोड़े लोग हमें कवि बोलते हैं।"श्रीमती जी," नरभै कवि? आपर गिच्च मुसलमान मिट्ठू बणौ जरुरत नि।तुमते हि त मिल वख राष्ट्रपति साहित्य रचना पुरस्कार.जन बुलैं।हाँ,हाँ । चलि जौल चेैत मा मैत। ना मिन चाय बणाण अर् न कुछ खाणो। बस। मनै ल्याव नै साल ।सौ बात क एक बात। बस।"श्रीमान जी," पर आज साल कू आखरि दिन च आज त बणै दी यार।" सर्रा ढिभरी बल मुण्ड माण्डि अर् पूंछ क बखत टैं फैं " पर मिन त कुछ नि ब्वाल।(घपरोल जारी)
श्रीमतीजी(बड़बड़ायीं)," कतगा चलाक च यू आदिम । आपर झाड़ू पौंछा क काम त पैसों मा कराणू नौकरानी मा । हैँ ! अर् मि यूंक लदोड़ी फुकणो हमेशा चुल्लू पर हि मिस्सू रौल।
इन नि सूचणू कि ब्वारी तैं समझों कि बेटा "
स्यूं गाल़ि नि सीख अर खाणो बणौन सीख अपरी सासू क बात मान।" गढवालि त दगड़ रैकि सीख हि जाऽलि।
श्रीमान जी," क्य छै तू मंतर सि बड़बड़ांद जाणि किचन मा ।आज त चुप रै। ब्याखुनि दफै नै साल कू पार्टी च बल। धरमू बताणो छै।"
श्रीमती जी," क्य ज्वान बण्यूं च। "बूढड़ि घोड़ी अर लाल लगाऽम!। घुटकि लगाणो चक्कर मा खुश ह्वाल हुयूं। फिर सर्रा रात इक्कू गाणा ," सतपुलिक सैणा मेरी बौ हे पुष्पा हो . . . ।
श्रीमान जी," बच्चोंक खुशि मा हि हमार खुशी च। जादा कड़कड़ाट नि कैर। नै साल कु स्वागत खुश ह्वैक करलाऽ।"
श्रीमती जी," हमारु नै साल त चैत बिटीक शुरु हुंद।मिन त आज तक नि मनै। हाँ तुम आदिमूक घुटकि लगाणो चक्कर मा नै साल च। "मुंह मा न बल दांत अर् पेट मा न आंत" तब रैलु वे पीजा,बर्गर,हाऽट डॅाग दस घण्टा तक चप-आ-चप लग्यूं। नरभै पार्टी।"
श्रीमान जी," अच्छा, चलो मि बच्चों खुणि बुल्दू कि "होटल से कुछ नहीं आयेगा। आज सारी गढवाली डिश बनेंगी नये साल में " तैयार छे.
श्रीमती जी," बस बढि ग्या न ब्लड प्रेसर। ह्वै ग्या हिंदी शुरु। शाम खुणि त एक घूंटो बाद अमेरिक हिंगलिश शुरु। मिन त कुछ नि बणान.
अर ना म्यार घारम हल्ला मचाणो जरुरत।वक्खि चलि जाव वीं पातर आपरि पुष्पा बौक घार।"
श्रीमान जी," इन बुल्दि कि आंदु हि नी गढवालि डिस। अहा,भर्यां स्वाल,बाड़ी,फाणु,गुलगुला,
मर्सा कू हलवा, गैथु पत्वड़ा, प्लेऊ,चुनू भरिं र्वटि। कुछ नि आंदू त्वे तैं।बथ करणि च वखम।पुष्पा बौ ते सबकुछ आंदु।
चा ला एक कप।
त्यार त सुबेर-सुबेर यी ही काम च। चर चर ,बड़ बड़ बकबास शुरु करण."
श्रीमती जी,"न इन बतौ! तुम ते आज तक कू खलाणू रै। मि कि वा पातर पुष्पा बौ।ठिक त ब्वाल मिन कि हमार नै साल "चैत"कु मैना आंदु।"
श्रीमान जी," न बासा घुघती चैता की,खुद ह लगिं मि मैता की।" यू गाणा भि त ।
"कब आलू मैना चैत कू, जब तू जैला मैत कू।" हा हा क्य बढिया गीत बणि ग्या। ऐसे हि थोड़े लोग हमें कवि बोलते हैं।"
श्रीमती जी," नरभै कवि? आपर गिच्च मुसलमान मिट्ठू बणौ जरुरत नि।
तुमते हि त मिल वख राष्ट्रपति साहित्य रचना पुरस्कार.जन बुलैं।
हाँ,हाँ । चलि जौल चेैत मा मैत। ना मिन चाय बणाण अर् न कुछ खाणो। बस।
मनै ल्याव नै साल ।सौ बात क एक बात। बस।"
श्रीमान जी," पर आज साल कू आखरि दिन च आज त बणै दी यार।" सर्रा ढिभरी बल मुण्ड माण्डि अर् पूंछ क बखत टैं फैं "
पर मिन त कुछ नि ब्वाल।
(घपरोल जारी)


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