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भाग १ घपरोल

 भाग  १ 

सुबेर-सुबेर घपरोल

" क्या बुन तब "

" आज भै पडौसी जिले रै व्हाल भौत खुश ।जबकि बिचारौ एक टंगड़ टूटि ग्याइ छाइ सीढ़ी मा लमड़िक परसी" जनानि।
" मिते पता च। किले छाई वू खुश। तिन बतै व्हाल वैते कि ब्यालि रात मि छज्या मा रैड़ि ग्यों । म्यार द्वी घुण्ड कटमचूर व्है गैन"।कजै
" हाँ! अब पड़ौसी तैं त सुख- दुख बताण ही च जी" ।जनानि
" तबि त !नरभै जनानि , तू बुल्दी कि जर्रा सी खरोंच आई । त वैन अभि तक चिल्लाणों रैंण छाई। जन ब्यालि छाइ चिल्लाणू। पर त्वै से भी मेरि खुशी नि दिखेंद" कजै।

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)


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