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भाग ३६घपरोल

भाग ३६

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमान जी," तू रोज बुलदि कि मि पर कविता ल्याखा. आज त्यार स्वीणा पूरु . लेखि याल तै पर कविता ।"
श्रीमती जी," अच्छा सूणा जी। आच्छि ह्वैल त बढिया अदरक चा बणौल . निथर ! "
श्रीमान जी," निथर क्या ? "
श्रीमती जी," ऊ त, कविता सुणनो बाद हि पता चालाल।"
श्रीमान जी," मि भूलि ग्यों अब। हैंक दिन सुणोल जब बौ बि आईं रैल यखम।"
श्रीमती जी," मतबल फिर वीं आपरि पुष्पा बौ तें बि बिच मा पंच बणैल ।"
श्रीमान जी," न जी। मतबल ! दिया बाति लौ कम करणा खुणि सूरज त दिखाण हि प्वाड़ल ।"
श्रीमती जी," मतलब मि सूरज छौं "
श्रीमान जी," न जी ना. तुम त द्य्यू छवा। सट सुलगिक आग लगै दिंदा।"
श्रीमती जी," क्या। आज मिन तुमारि सबि पोथी नि फूक त म्यार नाम बि. . . "
श्रीमान जी," मिन त कुछ नि बोलि . .

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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