ये बस गाँव वालों की कही-सुनी बातें हैं। इस कहानी का कोई ठोस प्रमाण तो नहीं हैं पर अगर आप ज्योलिकोट जाएँगें तो कोई ना कोई आपको इस विचित्र घटना के बारे में बता ही देगा।
ये 19वी शताब्दी की बात है जब लेफ्टिनेंट कर्नल वॉर्विक नाम के एक अंग्रेजी अफसर ज्योलिकोट आए थे। उस समय में ज्योलिकोट एक छोटा सा गाँव था जहाँ पर नैनीताल जाते हुए अंग्रेजी अफसर और उनके घोड़े कुछ देर सुस्ताते थे।
यहाँ पर रुके वॉर्विक साहब को एक स्थानीय लड़की से प्यार हो गया और कर्नल साहब यहीं के होकर रह गए। उन्होंने गाँव की उस महिला से शादी रचाई और ज्योलिकोट में एक घर भी बनाया। शादी के कुछ सालों बाद वार्विक साहब की पत्नी का देहांत हो गया और 20 कमरों के इस घर में वो अकेले रहने लगे। ना नौकरों को अंदर आने की इजाज़त थी और गाँव वाले अगर पास से भी गुज़रते तो उनको धुत्कार कर भगा दिया जाता।
इस दौरान गाँव वालों ने यहाँ हो रही अजीबोगरीब गतिविधियों पर ध्यान दिया। हर रात अँधेरा होते ही उनको एक औरत दिखा करने लगी जो की घोड़े पर सवार होकर गाँव भर में घूमती थी। लोग घर के अंदर भी रहते तो उनको घोड़े के सरपट दौड़ने की आवाज़ आती। थोड़ी छानबीन के बाद पता चला की वो वॉर्विक साहब ही थे जो अपनी मृत पत्नी के कपड़े और गहने पहन कर रोज़ घोड़े पर सवार गाँव के चक्कर काटते।
क्योंकि गाँव वालों को इस अंग्रेज़ अफसर से हमदर्दी थी इसलिए उन्होंने कर्नल वॉर्विक को कभी नहीं रोका। धीरे-धीरे लोग ये भी मानने लगे की घोड़े पर सवारऔरत के भेस में वॉर्विक रात को डाकुओं से गाँव वालों की रक्षा करता है और जंगली जानवरों से उनके खेतों को बचाता।
इस घटना के सालों बाद आज भी रातों को ज्योलिकोट में घोड़े की हिनहिनाने और सरपट दौड़ने की आवाज़ें आती हैं। लोग आज भी वॉर्विक को ज्योलिकोट का रखवाला भूत बुलाते हैं।
बालकृष्ण डी ध्यानी
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