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भाग ७घपरोल

 भाग  ७ 

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

"अजक्याल कवि अर् वूंक घरवालि छ्वीं बात"
घरवालि," तुमरो कुछ काम नि। चोबिस घण्टा स्यू मोबाइल पर लाइव कवयित्री व कवियों तैं सुणदा रैंदा।
तुमरी कविता त क्वी सुणदूं नि। बस बरड़ बरड़ ।खिज नि उठणि तुम तैं? "
कविवर," तू तीस- पैंतीस साल बिटी छे लगिं सुबेर शाम बरड़ -बरड़ , कचर- पचर । मिन कुछ ब्वाल।मिते क्वी खिज ह्वै।"
घरवालि," फ्वाड़ो तों कंदूड़ । मिते क्या जी च।'।
कविवर," अब रोज पैंतिस साल बिटी त्यार बड़बड़ाट सुणि बच्यूं क्या च फूटणा खुणि।"
घरवालि," हे भगवान! मि त यूं नाति नतणों बजह से छौं यीं राजधानी मा। निथर मिन कैदिन गौं उत्तराखण्ड चलि जौण छै।"
कविवर," हाँ! जनि तू मैत चलि गै। पैलि बुल्दी छै मि त नौनियालों खातिर छौं रुक्यूं निथर मिन मैत चलि जाणू छै। अर् अब नाती- नातिणों बहाना।जाण कखि नि।"
घरवालि," ठिक च । जर्रा यूं तें इस्कूल जाण जुगा कैरि द्यूं फिर मिन गौं चलि जाण।'
कविवर," दिखदू छों।त्यार भभतात दिखद उमर गुजरि ग्याइ।
घरवालि," हैं। ब्वारि ते छुट्या तैं मि मा पकडै जा।अर तू आफिस जाणो तैयारी कैर।

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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