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बारदा नाटी



बारदा नाटी

बारदा नाटी एक विशेष प्रकार का लोक नृत्य है जो देहरादून जिले के जौनसार भाव क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। मुख्य रूप से किसी भी महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव से पहले किया जाता है, इस नृत्य रूप में रंगीन स्थानीय वेशभूषा और पुरुषों और महिलाओं दोनों की भागीदारी होती है।
समृद्ध पारंपरिक संस्कृति को कायम रखा है। इस क्षेत्र के पहाड़ और घाटियाँ यहाँ के नृत्य रूपों में प्रतिबिंबित होते हैं। नाटी नृत्य  प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह संगीतकारों के साथ लोगों के एक समूह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। नृत्य समूह में पुरुष और महिला दोनों सम्मिलित होते हैं, जिसका नेतृत्व प्रायः चँवर पकड़े हुए एक पुरुष करता है। नृत्य समूह की पोशाक गद्दी खानाबदोशों को दर्शाती है। पुरुष ऊनी वस्त्र पहनते हैं जिसमें पीठ के निचले हिस्से पर लंबे कमरबंद बंधे होते हैं। वे एक प्रतीकात्मक पहाड़ी  टोपी भी पहनते हैं, जिसके सबसे ऊपरी हिस्से पर फूल लगाए जाते हैं। दूसरी ओर, महिलाएँ चूड़ीदार, चोला, गहने पहनती हैं और रंगीन स्कार्फ़ से अपना सिर ढकती हैं। संगीतकारों को टूनिस कहा जाता है और प्रदर्शन के दौरान बाँसुरी, ढोल, नगाड़ा, नरसिंघा, करनाल, और सनई वाद्ययंत्र उपयोग किये जाते हैं। नाटी प्रदर्शन के अंत में नर्तकों द्वारा देवी और देवताओं को श्रद्धांजलि देने के रूप में एक यज्ञ किया जाता है।

नाटी नृत्य  

  • नाटी एक समृद्ध नृत्य परंपरा है। यह मेलों तथा त्योहारों पर किया जाने वाला सबसे लोकप्रिय व मशहूर नृत्य है।
  • नाटी नृत्य हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, सिरमौर, शिमला इत्यादि जनपदों में भी किया जाता है।
  • इसे धीमी गति से आरम्भ किया जाता है, जिसे करते समय इसे ढीली नाटी कहा जाता है व बाद में यह द्रुत गति से बढ़ता जाता है।
  • इस नृत्य में ढोलक, करनाल, रणसिंघा, बांसुरी, शहनाई एवं नगाड़े का प्रयोग किया जाता है|
  • इस नृत्य में महिलाएँ घर आंगन में लिपाई कर नर्तन करते हुए खुशी का इजहार करती हैं।

प्रकार

नाटी नृत्य के कई प्रकार हैं। जिस प्रकार छंद-अलंकार के 9 गुण होते हैं, उसी प्रकार से नाटी नृत्य में भी 9 प्रकार के ताल हैं। इस नृत्य में स्वच्छंदता व व्यवस्था है व उन्मुक्त भाव भी है। ऐसी स्वभाविकता जनसमुदाय में प्रवाह है। खड़यातर नाटी में वीरता का भाव है। यह नृत्य धीमी गति से शुरू होकर तेज़ नृत्य के साथ खत्म होती हैं। नाटी नृत्य के कई प्रकार हैं जिनमें मुख्य इस प्रकार है:-

  1. ताउली
  2. फेटी नटी
  3. बाखली नटी
  4. बुशहरी नटी
  5. बांठड़ा
  6. हौरन
  7. चद्रांउली

जौनसारी उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है।
जौनसारी जनजाति टिहरी गढ़वाल जिले की पहाड़ियों पर निवास करती है।
जौनसारी जनजाति के लोग पांडवों को अपना पूर्वज मानते हैं।
जौनसारी लोग महासू देवता की पूजा करते हैं।
इन लोगों में बहुपति प्रथा प्रचलित है एवं जन अंतर्जातीय विवाह का भी प्रचलन है।
जौनसारी महिलाएं कृषि कार्य करने में दक्ष होती है। इसी के द्वारा यह लोग अपना पेट पालते हैं।
पुरुष पजामा, कुर्ता पहनते हैं तथा महिलाएं घुटनों तक का कुर्ता व घागरा पहनती है।
आधुनिकता के इस समय में पेंट-कोट तथा साड़ी ब्लाउज का प्रचलन बढ़ गया।

बालकृष्ण डी ध्यानी
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