अपनों के बीच
इसलिये शायद भैर हूँ मैं
उकतात मन सैर हूँ मैं
तब भी तो वहां गैर हूँ मैं
माया मन जैर हूँ मैं
तब भी मन कहे ठैर हूँ मैं
चाह और अचाह बीच हूँ मैं
पानी तो हूँ पर खारा हूँ मैं
बेकार हूँ बेफिजूल हूँ मैं
अपने लिए तो कबूल हूँ मैं
अपनों के बीच .......
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