कहं तुम चले गये
जग के मोहन
मोहते मोहते जगजीत हो गये
गजल की गुमसुदी को एक होश दे गये
हुशनो वालों की शिकयत
का तरानुम दे गये
चेहरे को एक नया रूप दे गये
आशीकी को नया आयाम दे गये
मोशीकी का नया अंदाजा ढल गये
गजल उडने का परवाज दे गये
जीवनी के दर्द को
अपने सुर मै ढल गये
विकास का हाथ पकड़कर
चित्रा को अकेले छुड़ गये
गुनगुने यकांत अकेले मै
ओ आपना साजा छुड गये
इस महफ़िल छुडकार
न जाने किस और चले गये
चीट्ठी ना कोई सन्देश
ओ मेरे गजल के देश
आवाज लगती है अब
कंहा तुम चले गये
जग के मोहन
मोहते मोहते जगजीत हो गये
गजल की गुमसुदी को एक होश दे गये
हुशनो वालों की शिकयत
का तरानुम दे गये
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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