मेर पह्चाण
क्या च मेर रसयाण
क्या च मेर पह्चाण
रोंल्युं रोल्युं मै बग़द फिरूं
काफल कीन्गोड़ा चखाद फिरूं
क्या च मेर रसयाण......
चखाल सा मी उड़ता फिरूं
कभी आमी की डाली मा
कभी पिपाल की डाली मा
बैठता झूलता फिरूं
क्या च मेर रसयाण......
ये च मेर रसयाण
ये च मेर पह्चाण
मयारू तन मन म्यार खंड बाण
ये मेरु जीवन म्यार उत्तरखंड बाण
क्या च मेर रसयाण......
बीता दिणु बाण मी रडता फिरूं
या अंख्यु मा पेरता फिरूं
आपडा गड देश सपना संजोंता फिरूं
उत्तराखंड का बाण यूँ मी सोचता फिरूं
क्या च मेर रसयाण......
क्या च मेर रसयाण
क्या च मेर पह्चाण
रोंल्युं रोल्युं मै बग़द फिरूं
काफल कीन्गोड़ा चखाद फिरूं
क्या च मेर रसयाण......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot .com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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