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घर की खिड़की



घर की खिड़की

मेरे घर की खिड़की है 
मेर ये जीवन दर्पण 
चार कोने लोहे के सलाखों 
सहरे जुडी होई 
मेरे घर का सुरक्षीत होने 
का आभास दिलाती रहती है 
मेरे घर की खिड़की है 

कई प्रहार ऐकांत 
मे मै बैठे बैठे मेर मन 
मस्तिस्क मै उभरे 
कल्पनाऊं विचारों को 
आपने कलम के सहरे
अक्षर बंध करती होये 
मेरे घर की खिड़की है 

वो सुबह का भोर 
दोपहर की कड़ी धुप 
शाम की छायी लाली 
रात के अंधेरे मै खो जाती 
मुझे कुछ सोचने मजबोर करती 
मेरे घर की खिड़की है 

काले काले बादल का गर्जना 
हवाओं का यूँ चलना 
बरखा का बरसना 
बजली की कड़कड़हट 
मेरे अंतर पटल पर 
सुखद सन्देश मै भिगो जाता है 
मेरे घर की खिड़की है 

हर दुःख सुख की गव्हा
उसको ही मेरी परवाह
उस मै भी छुपा मेर खुदा 
ना कीसी से वो भी जुदा 
सबके नजरों मै आती 
और आप को भी भाती होगी 
मेरी तरह आपके घर की खिड़की 
मेरे घर की खिड़की है 

मेरे घर की खिड़की है 
मेर ये जीवन दर्पण 
चार कोने लोहे के सलाखों 
सहरे जुडी होई 
मेरे घर का सुरक्षीत होने 
का आभास दिलाती रहती है 
मेरे घर की खिड़की है 

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

कवी बालकृष्ण डी ध्यानी 
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