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शाएरी शाएरी अब तुम्हारी शाएरी


शाएरी शाएरी अब तुम्हारी शाएरी, 

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बस मै वक़्त को देखता रह गया ध्यानी
वो है की टिक टिक आगे ही निकलता रहा
रिश्तों की जुड़ी जंजीरें मुझ से ही अब बंधी है
उन को ही मै देखो अब तक जुड़ता रह गया
वो है की टिक टिक आगे ही निकलता रहा
ध्यानी
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जब सत्य तुम्हे डराता है
झूठ जब आसानी से बोला जाता है
समझ लो तुम्हरा पतन अब शीघ्र है
हर एक पन्ना वंहा लिखा जाता है
ध्यानी
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बस अपना बोझ उठाया और चल दिया
खत में रोशन यादें,नन्हें कन्धों पर भारी बस्ता धर दिया
लफ्ज़ का खेल था बुलंदी के बोझ तले दबा
एक थैला सीमेंट का मैंने अपने मकबरे पे लेप दिया
ध्यानी बस अपना बोझ उठाया और चल दिया
ध्यानी
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बस दिल ने कह ,मैंने बोल दिया
भाव दिलों का ना तोला,मैंने बस बोल दिया
ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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