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भाग१७ घपरोल

भाग१७  

सुबेर-सुबेर घपरोल

" आजो गढवालि चुटकला" "

श्रीमती," जी! सुण्या छावा। आज नाश्ता मा क्या बणाण"?
श्रीमान जी," कुछ भी वणै ली यार," ।
श्रीमती ," ना बताव ना।"
श्रीमान जी," म्यार दिमाग खै याल सुबेर - सुबेर।
श्रीमती जी," मिन त खै याल दिमाग। म्तार त पुटुक भरै ग्याइ। पर तुम खुणि क्या बणाण नाश्त।"
श्रीमान जी," हैं" एक कूला चा अर द्वी बिस्कुट दे दी।
अब तेपर हुंद त मि भी वी खै लिंदू।'
श्रीमती जी," म्यार त वे दिन ही दिमाग स्वाह व्है ग्याइ छाई। जे दिन यू डाव व्हाई तुमार दगड़ ।" बिस्कुट त खतम छन। क्या बणाण ?"
श्रीमान जी," कुछ ना चा ही पिला दी बस।"
श्रीमती जी," चाय पत्ती खतम। ब्यालि शाम बतै छाई कि पत्ती खतम । त तुमन ब्वाल म्यार बरमड़ नि खा । सुबेर दिखेल।"
श्रीमान जी," दूध ही गरम कैरि दी।"
श्रीमती जी," गैस खतम। तुमन बोलि छाइ गैस मंहगी
व्है ग्याइ त चुल जगै लगे।"
श्रीमान जी," त चुलू मा ही गरम कैरि दी।"
श्रीमती जी," लाखड़ तुम ल्याइ नि छाव तुम। "
श्रीमान जी," हे भगवान। वे दूध क पतिला म्यार कपाल मा धेरि दी । तेरि बातों न गरम कैरि द्याइ।'
श्रीमती जी,": फिर नाश्ता ही बणै द्यूल। क्या बणाण नाश्ता?"
श्रीमान जी," हे भगवान ।"
( अबि फाइनल नि व्हाई कि नाश्ता क्या बणाण। घपरौल ह्वै ग्याइ सहाब)

विश्वेश्वर प्रसाद-(सिलस्वाल जी)

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