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प्रलय

प्रलय
लगता है प्रलय होनॆ को है
स्रष्टी अब अपने को खोने को है

माया अपने मै ही फसने को है
कर्म अपना फल भुगतने को है

विश्व की इश उथल-पुथल मै
हर श्रण विलीन होने को है

जवाल की फुंकर कंही
भूकंप की हाहाकर

सुनामी का आतंक कंही
वक़त खड़ लाचार

नोर्स्द्मस का भविष्यवाणी
अब सच होने को है

मायांन मूल की जाती का
२०१२ मै कैलंडर ख़तम होने को है

काले बदल का शोर है
लगता है संकट अति घोर है

खून की फुहार कंही
मातम का शोर

बम और नुक्लीयर 
का खतरा चहु और

खुद की करनी का फल
अब इन्सान भुगते का

   कलियुग का अब
                                                                    अतिम दार खुलेगा
                                                                    अब मेरी  भी इन्द्रियां
जवाब देनै को है

अब लगता है मानव
प्रलय होनॆ को है
स्रष्टी अब अपने को खोने को है
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कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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