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हँसान गुदगुदना


हँसान गुदगुदना
कौन नहीं चाहता
इस जी कु बहलाना
कौन नहीं चाहता
इस जी कु गुदगुदना
बेवकूफा है ओ
जो अपने जी को मारते हैं
जीवन की छुटी छुटी खुशियाँ
ठुकराते हैं
इनसे ही जीना है
खुशियाँ का डोस हर रूअज पीना है
अगर १०१ साल जीना है
इन छुटे पालूँ को सजाना है
दुखऊं को दूर भागना है
कर ना चिंता यार
बाकि सब है बेकार
कर ना अपना बुरा हाल
हंसते हंसाते
बीत जायंगे
ये जीवन के पल चार
हँसान गुदगुदना
कौन नहीं चाहता
इस जी कु बहलाना
कौन नहीं चाहता
बेवकूफा है ओ
जो अपने जी को मारते हैं

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कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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