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बहरीन (एक खजूर का पेड़ ) मध्य पूर्व से


बहरीन (एक खजूर का पेड़ ) मध्य पूर्व से


एक खजूर का पेड़
न रही बहार अब ?

सब बिखर सा गया
मै खडा था दूर, दूर ही रहा

देख रहा थ चुप चाप
और मौन ही रहा

खडे खडे ऐसी लू चली
तेल के बीन  झुलाशा सा  गया

बहारो का नाम था जिश्का
आज खिंजा का आलम है

ऐसी उठी अंधी यहाँ
सब तबा सा गया

कल तक था याहाँ एक मौती
आज न जाने काहाँ खो गया

अंत:करण मै वेदना
मुख पर कटाक्ष है

पलपल गलियौ मै
अब छटपटाती आज लाश है

आजादी चाहीये हमे
अपने तन से या मन से

आजाद यंहा हर जीवा है
शायद्  ही अपने कर्म से

आजादी नहीं मिलाती
सिर्फ हतीयार उठाने से

ना ही ऑहीसा परमुधर्मं
कु यूं ही  गुनगुनाने से

सब बिखर सा गया
मै खडा था दूर दूर ही रहा 

एक खजूर का पेड़
न रही बहार अब ?


कवी बालकृष्ण डी ध्यानी
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